जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की। और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की। परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की। ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की। महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की। देख बहारें होली की :- नज़ीर अकबराबादी जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की। और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की। परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की। ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की। महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की। हो नाच रंगीली परियों का, बैठे हों गुलरू रंग भरे कुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग भरे दिल फूले देख बहारों को, और कानों में अहंग भरे कुछ तबले खड़कें रंग भरे, कुछ ऐश के दम मुंह चंग भरे कुछ घुंगरू ताल छनकते हों, तब देख बहारें होली की गुलज़ार खिलें हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो। कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो। मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो और हाथों में पिचकारी हो। उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो। सीनों से रंग ढलकत
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