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Showing posts from November, 2015

सज्जन व्यक्ति की गलत साेच का परिणाम :-

पौराणिक साहित्य को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि हमारे देवता भी सर्वथा निर्दोष या दुर्गुणों से मुक्त नहीं थे। लेकिन जहां उनका पतन हुआ, वहीं राक्षसों का जन्म हुआ। उन राक्षसों ने देवताओं को ही प्रताड़ित किया। इन पाैराणिक कथाओं में मनुष्य के लिए संभवत: यही संदेश है। वह गलत वृत्तियों का शिकार हो सकता है। वही वृत्तियां हमारे समाज में राक्षस संस्कृति को जन्म देती हैं। और अंतत: मनुष्य को स्वयं ही उनका निदान या उपचार करना होता है। इन बाताें काे यहां शेयर करने का तात्पर्य यह है कि, कुछ राक्षसी चरित्र के मनुष्य वर्तमान समय में तीव्र गति से विचरित हैं। जाे कुछ सज्जन/देवता व्यक्ति की गलत साेच का परिणाम हैं और उसका दण्ड सम्पूर्ण विद्वत समाज भाेग रहा है।

दाेहे:-

'मान' जीभ भयी बावरी उगले ज़हर हजार। जाे बस में रहे बावरी बचा रहे शीष सम्मान। #भारतमेराधर्म ********************************** 'मान' समूह में मिलत है, संख्य सैकड़ाे हजार। सफल तभी हाेत जब एक हाेये संकल्प विचार। #भारतमेराधर्म

23/11 कचहरी ब्लास्ट के आठ साल पुरे, अधिवक्ता देंगे श्रंद्धांजलि:-

वाराणसी/काशी के न्याय मंदिर में बम ब्लास्ट की घटना को आठ साल बीत गए हैं। घटना में तीन अधिवक्ताओं समेत नौ लोगों की मौत और पचास से अधिक लोग घायल हुए थे। कचहरी परिसर में काम करने वाले अधिवक्ताओं को साथियों को आज तक न्याय न मिलने का गम सता रहा है। 23 नवंबर 2007 को सिविल और कलक्ट्रेट परिसर में दो स्थानों पर ब्लास्ट हुए थे। घटना से पूरी वाराणसी थर्रा उठी थी। साेमवार को घटना की आठवीं बरसी तक न्याय तो दूर मामले में आज तक न ही कोई अभियुक्त पकड़ा जा सका है और न ही किसी का बयान दर्ज किया गया है। मामला एसटीएफ के पास है लेकिन फिर भी विवेचना आगे नहीं बढ़ सकी है। इससे अधिवक्ता और पीड़ितों के परिवार नाराज हैं। अधिवक्ता देते हैं प्रति वर्ष श्रद्धांजलि :- 23/11/2007 के बाद से हर बरसी पर दोनों घटना स्थल पर मारे गए लोगों की याद में पुष्प अर्पित करने के साथ दीप और कैंडिल जलाकर अधिवक्ता बंधुओं द्वारा श्रद्धांजलि दी जाती है।

कबीर :: शिरडी साईं :: महात्मा गांधी :-

कबीर ने करघे पर बैठकर ऐसी नायाब चादर बुनी, जिसे ऋषि-मुनि सबने ओढ़ी, फिर जस की तस धर दीनी चदरिया। साईं बाबा चक्की में रोग-शोक पीसकर सबको मुक्त करते थे, परन्तु बाबा कबीर चलती चाकी देख रोते थे। ‘चलती चाकी देख दिया कबीरा रोय’ अथवा 'चक्की में जाकर कोई साबुत नहीं बचता'। साईं बाबा मानते थे, आटे की तरह बिखराे मत, केन्द्र की तरफ जाओ। कबीर के कथन में न गेहूँ बचता है और न घुन। साईं बाबा एवं कबीर, दोनों के ही बीच में चक्की जन कल्याण का अद्भुत उपकरण रहा हैं। कैसी विचित्र बात है कि, कबीर के चार सौ साल बाद साईं बाबा ने चक्की को जनकल्याण के सन्देश का माध्यम बनाया और साईं बाबा के लगभग पाँच दशक बाद महात्मा गाँधी ने चरखे को परिवर्तन का ज़रिया बनाया।  जड़ के नीचे तीनाें संताें में एक समानता 'राम' का नाम रहा है। अगर कबीर 'निर्गुण राम' में रमे थे ताे साईं बाबा काे सब 'साईं राम' कह कर भजते हैं तथा गांधी 'हे राम' कह कर उपासना करते थे। यह भी एक जड़ हो सकती है, जिससे ये संत जुड़े थे।  चक्की व चरखा आध्यात्मिक और सामाजिक परिवर्तन के प्रभावी माध्यम बन गये। प्रतीत हाेता

सहिष्णुता का मतलब :-

"सहिष्णुता का मतलब है, हर वह अधिकार जिसे आप अपने लिए पाना चाहते हैं, वह दूसरों को भी मिले।" ********* Meaning of सहिष्णुता (Sahishnuta) in English:- Forbearance; Patient; Tolerance ********* Meaning of असहिष्णुता (Asahishnuta) in English:- Intolerance; Impatience ********* सहिष्णुता का अनुपम उदाहरण :- गांधीजी दक्षिण अफ्रीका प्रवास पर थे। एक बार वहां रेल से उतरने के बाद उन्होंने एक तांगा किया। तांगे में कुछ गोरे अंग्रेज व कुछ काले (भारतीय व अफ्रीकन नागरिक) बैठे थे। अंग्रेजों की भेदभाव-नीति यह थी कि वे अपने साथ काले लोगों का बैठना-खाना-पीना पसंद नहीं करते थे, तब भारत व अफ्रीकन देश गुलाम थे। तांगे में जगह न मिलने पर गांधीजी उसमें रखे बॉक्स (पेटी) पर बैठ गए। यह बात अंग्रेजों को नागवार गुजरी और उनमें से एक अंग्रेज ने महात्मा गांधी को पीटना शुरू कर दिया। गांधीजी काफी देर तक मार खाते रहे, तब दूसरे अंग्रेजों में इंसानियत जागी और उन्होंने गांधीजी को पिटने से बचाया। उन्होंने अंग्रेजों का कोई प्रतिरोध नहीं किया व उन्हें क्षमा कर दिया था। यह गांधीजी की सहनशीलता का अनुपम उदाहरण