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Showing posts from 2017

चर्चा विराम का नुस्खा : अधजल गगरी छलकत जाय

लेखक कुलवंत हैप्पी यह कहावत तब बहुत काम लगती है, जब खुद को ज्ञानी और दूसरे को मूर्ख साबित करना चाहते हों। अगर आप चर्चा करते हुए थक जाएं तो इस कहावत को बोलकर चर्चा समाप्त भी कर सकते हैं मेरी मकान मालकिन की तरह। जी हाँ, मेरी जब जब भी मेरी मकान मालकिन के साथ किसी मुद्दे पर चर्चा होती है तो वे अक्सर इस कहावत को बोलकर चर्चा को विराम दे देती है। इसलिए अक्सर मैं भी चर्चा से बचता हूँ, खासकर उसके साथ तो चर्चा करने से, क्योंकि वो चर्चा को बहस बना देती है, और आखिर में उक्त कहावत का इस्तेमाल कर चर्चा को समाप्त करने पर मजबूर कर देती है। मुझे लगता है कि चर्चा और बहस में उतना ही फर्क है, जितना जल और पानी में या फिर आईस और स्नो में। कभी किसी ने सोचा है कि सामने वाला अधजल गगरी है, हम कैसे फैसला कर सकते हैं? क्या पता हम ही अधजल गगरी हों? मुझे तो अधजल गगरी में भी कोई बुराई नजर नहीं आती। कुछ लोगों की फिदरत होती है, हमेशा सिक्के के एक पहलू को देखने की। कभी किसी ने विचार किया है कि अधजल गगरी छलकती है तो सारा दोष उसका नहीं होता, कुछ दोष तो हमारे चलने में भी होगा। मुझे याद है, जब खेतों में पानी वाला घड़ा उठा

भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार

भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जुड़े तथ्‍य इस प्रकार हैं: 1. इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है. 2. इसका वर्णन संविधान के भाग-3 में (अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35) है. 3. इसमें संशोधन हो सकता है और राष्ट्रीय आपात के दौरान (अनुच्छेद 352) जीवन एवं व्यकितिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है. 4. मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संविधान संशोधन (1979 ई०) के द्वारा संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31 से अनुच्छेद 19f) को मौलिक अधिकार की सूची से  हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद 300 (a) के अन्तगर्त क़ानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है. भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित मूल अधिकार प्राप्त हैं: 1. समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18) 2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22) 3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24) 4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28) 5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30) 6. संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32) 1. समता या समानता का अधिकार: अनुच्छेद 14

कैसे बताऊँ मैं:-

कैसे बताऊँ मैं तुम्हें मेरे लिए तुम कौन हो कैसे बताऊँ कैसे बताऊँ मैं तुम्हें तुम धड़कनों का गीत हो जीवन का तुम संगीत हो तुम ज़िन्दगी तुम बंदगी तुम रौशनी तुम ताज़गी तुम हर ख़ुशी तुम प्यार हो तुम प्रीत हो मनमीत हो आँखों में तुम यादों में तुम साँसों में तुम आहों में तुम नींदों में तुम ख़्वाबों में तुम तुम हो मेरी हर बात में तुम हो मेरे दिन रात में तुम सुबह में तुम श्याम में तुम सोच में तुम काम में मेरे लिए पाना भी तुम मेरे लिए खोना भी तुम मेरे लिए हंसना भी तुम मेरे लिए रोना भी तुम और जागना सोना भी तुम जाऊं कहीं देखूं कहीं तुम हो वहाँ तुम हो वहीँ कैसे बताऊँ मैं तुम्हें तुम बिन तो मैं कुछ भी नहीं कैसे बताऊँ मैं तुम्हें मेरे लिए तुम कौन हो ये जो तुम्हारा रूप है ये ज़िन्दगी की धुप है चन्दन से तरशा है बदन बहती है जिस में एक अगन ये शोखियाँ ये मस्तियाँ तुमको हवाओं से मिली ज़ुल्फ़ें घटाओं से मिली होंठों में कलियाँ खिल गयी आँखों को झीले मिल गयी चेहरे में सिमटी चांदनी आवाज़ में है रागिनी शीशे के जैसा अंग है फूलों के जैसा रंग है नदियों के जैसी चाल है क्या हुस्न है क्य

वकील - एक सामाजिक अभियन्ता

वकीलों को सामाजिक अभियन्ता भी कहा जाता है। आप तो जानते ही हैं कि हमारी दिन-चर्या एवं हमारा समाज, सभी कुछ कानून से बंधा है। वकीलों का कार्य है इन कानूनों को समझना और हम सबको अपना जीवन सफल बनाने में मदद करना। अनेक वकील विपदाग्रस्त लोगों की मदद करते हैं और महिला अधिकार जैसे क्षेत्रों में अपना योगदान देते हैं। यदि आप लोगों के जीवन में एक बेहतर कल के लिए परिवर्तन लाना चाहते हैं तो विधि-शास्त्र सर्वोत्तम पथ है। वकील समान्य एवं असामान्य स्थितियों में अपने सामान्य ज्ञान का प्रयोग कर प्रश्नों का उत्तर खोजते हैं। यदि आप होशियार एवं हाज़िर जवाब हैं, तो आप निश्चय ही सफल वकील बन सकते हैं। संविधानिक विधि का जटिल प्रश्न हो या फिर सड़क-कानून तोड़ने जैसा सामान्य विषय, वकील सभी प्रकार की स्थितियों में अपनी बुध्दि का प्रयोग कर सवालों के जवाब ढूंढते हैं। वकील जीवन के हर छेत्र से संबंधित लोगों के साथ कार्य करते हैं, कानून समझते एवं समझाते हैं और विधि-विषयक सिध्दान्तों का प्रयोग कर लोगों की छोटी-बड़ी परेशानियों का समाधान ढूंढते हैं। सीधे शब्दों में, एक अच्छा वकील वो है जो कि तीव्र बुध्दि है और अपने सामा

लक्ष्मण रेखा एक प्रतीक :-

***रामायण में अगर कोई एक शब्द जिससे संबंधित घटनाक्रम बाद में अत्यंत संवेदनशील व महत्वपूर्ण बन गया और जिसका उपयोग कालांतर में युगों-युगों तक, मुहावरों, लोकोक्तियों, कहावतों, कहानियों, धार्मिक उपदेशों में, निरंतर हो रहा है तो वो यकीनन लक्ष्मण-रेखा शब्द ही होना चाहिए। क्या रामायण में यह लक्ष्मण-रेखा सिर्फ माता सीता के लिए खिंची गई थी? यकीनन उद्देश्य तो जंगल में माता सीता की सुरक्षा ही थी। किसी अनजान का बाहर से भीतर प्रवेश इस रेखा के बाद वर्जित था। अर्थात यह रावण के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक थी। इस लक्ष्मण-रेखा को सिर्फ एक सुरक्षा कवच न मानते हुए अगर संकेत और प्रतीक की तरह देखा जाये, एक विचारधारा व दृष्टिकोण के रूप में लिया जाये तो कई लक्ष्मण-रेखाएं रामायण के हर चरित्र के लिए अदृश्य रूप से ही सही, मगर इस धर्म-ग्रंथ में उपस्थित है। अगर सीधे और सरल शब्दार्थ में कहना हो तो इसे एक सीमा के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। यह सामाजिक मनुष्य के स्वतंत्रता की सीमा हो सकती है। आचरण व अधिकारों की सीमा हो सकती है। चाहत-इच्छाओं-महत्वाकांक्षाओं की सीमा हो सकती है। रिश्तों-भावों में बहने की सीमा हो