अन्तहीन विषय बनता जा रहा है, "प्रातःकालीन न्यायालय अवधि"
*2014 में मई जून माह पूरे 2 माह की 'कार्य से विरत' (हड़ताल) का प्रस्ताव
*फिर बार काउंसिल द्वारा हर माह की 28 तारीख को 'कार्य से विरत' (हड़ताल) का प्रस्ताव
*फिर उच्च न्यायलय के द्वारा 8 से 2 व 10 से 4 बजे की न्यायालय अवधि को चुने का प्रस्ताव
*2015 में साधारण सभा ने 10 से 4 की समयावधि को चुना क्योंकि वे पूर्व की भांति 6.30 से 12.30 की अवधि चाहती है
*शायद उसी 2015 की साधारण सभा ने यह भी पारित किया कि बार काउंसिल के पूर्व के प्रस्ताव को मानते हुये 28 तारीख की 'कार्य से विरत' (हड़ताल) जारी रहेगी
*2015 में ही शायद दी बनारस बार एसोसिएशन ने यह प्रस्ताव पारित किया की 28 तारीख का 'कार्य से विरत' (हड़ताल) का प्रस्ताव हमारे बार से नहीं सेन्ट्रल बार से पारित हुआ है
*फिर 2016 में 28 तारीख का 'कार्य से विरत' (हड़ताल) का प्रस्ताव निरन्तर जारी रहा
*2016 में बनारस बार में 8 से 2 का प्रस्ताव पारित किया और सेन्ट्रल बार ने 8 से 2 के प्रस्ताव का विरोध किया, जिसके कारण न्यायालय अवधि पूरे वर्ष एक समान 10 से 4 रही
*अब 2017 में पुनः 28 का 'कार्य से विरत' (हड़ताल) का प्रस्ताव संयुक्त बार की प्रबंध समिति द्वारा समाप्त!
??? है ना अन्तहीन विषय ???
***समस्या का एक मात्र समाधान:- हर माह के 28 तारीख का 'कार्य से विरत' (हड़ताल) अर्थात प्रातःकालीन न्यायालय अवधि के आंदोलन पर संयुक्त बार के साधारण सभा की बैठक आहूत कर सभी सदस्यों का 'मतदान' करा लिया जायें और समस्या का स्थायी हल दो से तीन दिन में निकल जायेगा!
*** ?? क्या आप मेरी राय से सहमत हैं??***
#AdvAnshuman
एक तर्क हमेशा दिया जाता है कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा होता तो यह कैसे सम्भव होता कि महान रामभक्त और राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास इसका वर्णन पाने इस ग्रन्थ में नहीं करते ? ये बात सही है कि रामचरित मानस में गोस्वामी जी ने मंदिर विध्वंस और बाबरी मस्जिद का कोई वर्णन नहीं किया है। हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने इसको खूब प्रचारित किया और जन मानस में यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि कोई मंदिर टूटा ही नहीं था और यह सब झूठ है। यह प्रश्न इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष भी था। इलाहाबाद उच्च नयायालय में जब बहस शुरू हुयी तो श्री रामभद्राचार्य जी को Indian Evidence Act के अंतर्गत एक expert witness के तौर पर बुलाया गया और इस सवाल का उत्तर पूछा गया। उन्होंने कहा कि यह सही है कि श्री रामचरित मानस में इस घटना का वर्णन नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने इसका वर्णन अपनी अन्य कृति 'तुलसी दोहा शतक' में किया है जो कि श्री रामचरित मानस से कम प्रचलित है। अतः यह कहना गलत है कि तुलसी दास जो कि बाबर के समकालीन भी थे,ने राम मंदिर तोड़े जाने की घटना का वर्णन नहीं किया है और जहाँ तक राम चरित मानस
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