***रामायण में अगर कोई एक शब्द जिससे संबंधित घटनाक्रम बाद में अत्यंत संवेदनशील व महत्वपूर्ण बन गया और जिसका उपयोग कालांतर में युगों-युगों तक, मुहावरों, लोकोक्तियों, कहावतों, कहानियों, धार्मिक उपदेशों में, निरंतर हो रहा है तो वो यकीनन लक्ष्मण-रेखा शब्द ही होना चाहिए।
क्या रामायण में यह लक्ष्मण-रेखा सिर्फ माता सीता के लिए खिंची गई थी? यकीनन उद्देश्य तो जंगल में माता सीता की सुरक्षा ही थी। किसी अनजान का बाहर से भीतर प्रवेश इस रेखा के बाद वर्जित था। अर्थात यह रावण के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक थी। इस लक्ष्मण-रेखा को सिर्फ एक सुरक्षा कवच न मानते हुए अगर संकेत और प्रतीक की तरह देखा जाये, एक विचारधारा व दृष्टिकोण के रूप में लिया जाये तो कई लक्ष्मण-रेखाएं रामायण के हर चरित्र के लिए अदृश्य रूप से ही सही, मगर इस धर्म-ग्रंथ में उपस्थित है। अगर सीधे और सरल शब्दार्थ में कहना हो तो इसे एक सीमा के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। यह सामाजिक मनुष्य के स्वतंत्रता की सीमा हो सकती है। आचरण व अधिकारों की सीमा हो सकती है। चाहत-इच्छाओं-महत्वाकांक्षाओं की सीमा हो सकती है। रिश्तों-भावों में बहने की सीमा हो सकती है। सहनशीलता से लेकर अत्याचार सहने तक की भी सीमा हो सकती है। और व्यावहारिक जीवनशैली में दिशा-निर्देशन भी हो सकती है। लक्ष्मण-रेखा तो दशरथ और कैकेयी की भी थी, जिसे लांघने का खमियाजा फिर पूरे राजवंश ने भोगा। लक्ष्मण-रेखा तो वानर राज बलि की भी थी। संक्षिप्त में कहें तो लक्ष्मण-रेखा हर एक चरित्र की है और होती है। फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ ने अपनी-अपनी लक्ष्मण-रेखाओं को सहजता, सरलता व समयानुसार स्वीकार किया तो कइयों ने इसका जाने-अनजाने ही सही उल्लंघन किया। शायद रामायण से समाज को यह संदेश तो चला ही गया कि लक्ष्मण-रेखाएं किसी को भी नहीं लांघनी चाहिए। फिर चाहे वह शक्तिशाली शिव-भक्त असुर रावण ही क्यूं न हो। मगर हम इस बृहद् भावार्थ को और इसमें छिपे हुए गहरे संदेश को न तो समझ पाते हैं न ही आत्मसात् कर पाते हैं। वैसे विभिन्न लक्ष्मण-रेखाओं को हर हाल में मानते हुए अपना कर्तव्य-पालन के कारण ही राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये।**
#भारतमेराधर्म
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एक तर्क हमेशा दिया जाता है कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा होता तो यह कैसे सम्भव होता कि महान रामभक्त और राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास इसका वर्णन पाने इस ग्रन्थ में नहीं करते ? ये बात सही है कि रामचरित मानस में गोस्वामी जी ने मंदिर विध्वंस और बाबरी मस्जिद का कोई वर्णन नहीं किया है। हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने इसको खूब प्रचारित किया और जन मानस में यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि कोई मंदिर टूटा ही नहीं था और यह सब झूठ है। यह प्रश्न इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष भी था। इलाहाबाद उच्च नयायालय में जब बहस शुरू हुयी तो श्री रामभद्राचार्य जी को Indian Evidence Act के अंतर्गत एक expert witness के तौर पर बुलाया गया और इस सवाल का उत्तर पूछा गया। उन्होंने कहा कि यह सही है कि श्री रामचरित मानस में इस घटना का वर्णन नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने इसका वर्णन अपनी अन्य कृति 'तुलसी दोहा शतक' में किया है जो कि श्री रामचरित मानस से कम प्रचलित है। अतः यह कहना गलत है कि तुलसी दास जो कि बाबर के समकालीन भी थे,ने राम मंदिर तोड़े जाने की घटना का वर्णन नहीं किया है और जहाँ तक राम चरित मानस
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