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Showing posts from 2018

क्यों आयी COP की नौबत???

अधिवक्ता अब सिर्फ वही रहेंगे जिनका पेशा सिर्फ वकालत है। रजिस्ट्रेशन कराकर दूसरे पेशों से जुड़े या सरकारी नौकरी कर रहे लोगों को बार बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी में है। इसके लिए बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने वेरीफिकेशन के हथियार को इस्तेमाल किया है। छह साल से अधिक समय से रजिस्ट्रेशन कराने वाले अधिवक्ताओं को यह फॉर्म भरना अनिवार्य होगा। वेरीफिकेशन बार कौंसिल खुद कराएगा। क्यों लिया गया निर्णय :- बार कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा इस प्रक्रिया को शुरू करने का उदेश्य उन्हें चिन्हित करना है जो वकालत के अलावा कुछ नहीं करते। दूसरे पेशे से जुड़े होने के बाद भी वकालत को सुरक्षा कवच के तौर पर इस्तेमाल करने वालों को बाहर का रास्ता दिखाना है ताकि पूरे देश में वकीलों की छवि बेदाग रहे। फ्रीमें स्कीम का उठाते हैं लाभ:- अधिवक्तओं के हित में उत्तर प्रदेश सरकार और यूपी बार कौंसिल द्वारा कई योजनाएं चलायी जा रही हैं। इनका लाभ हाईकोर्ट में रजिस्टर्ड अधिवक्ताओं को मिलता है। यूपी प्रदेश सरकार द्वारा अधिवक्ता कल्याण निधि न्यासी समिति का गठन किया गया है। इसके तहत किसी अधिवक्ता की मृत्यु साठ साल के बाद होती है तो उसे स

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् :-

ॐ = प्रणव भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला तत = वह सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल वरेण्यं = सबसे उत्तम भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला देवस्य = प्रभु धीमहि- = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान) धियो = बुद्धि यो = जो नः = हमारी प्रचो- दयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना) ।।ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।।

जानिए, काशी के इतिहास की वो तिथियां जिन्होंने बदल दिया बनारस को:-

800 ई0पू0    राजघाट (वाराणसी) में प्राचीनतम बस्ती और मिट्टी के तटबंध के पुरावशेष 8वीं सदी ई0पू0     तेईसवें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ का काशी में जन्म। 7वीं सदी ई0पू0 काशी-एक स्वतंत्र महाजनपद। 625 ई0पू0    काशी सारनाथ में सर्वप्रथम भगवान बुद्ध ने बौद्धधर्म का उपदेश दिया था। 405 ई0पू0    चीनी यात्री फाह्यान का काशी में  आगमन हुआ। 340 ई0पू0    सम्राट अशोक की वाराणसी-यात्रा। सारनाथ में अशोक-स्तंभ और धम्मेख तथा धर्मराजिक स्तूपों की स्थापना। 1 ई0 से 300 ई0   राजघाट के पुरावशेषों के आधार पर वाराणसी के इतिहास में समृद्धि का काल। सन् 302  मणिकर्णिका घाट का निर्माण हुआ था 816 ई0    आदि जगदगुरू शंकराचार्य का काशी में आगमन हुआ। सन् 580  पचगंगा घाट का निर्माण हुआ। 12वीं सदी काशी पर गहड़वालों का शासन। गहड़वाल नरेश गोविन्दचंद्र के राजपंडित दामोदर द्वारा तत्कालीन   लोकभाषा (कोसली) में उक्तिव्यक्ति प्रकरण की रचना। गोविंदचंद्र की रानी कुमारदेवी ने सारनाथ में विहार     बनवाया। गहडवाल युग में काशी के   प्रधान देवता अविमुक्तेश्वर शिव की विश्वेश्वर में तब्दीली। सन् 1193 काशीराज जयचंद की मृत्यु। स

COP, Affiliation & Model By-Laws Rules और बार एसोसिएशन के सदस्यों का आर्थिक व अनुशासनिक हित/कल्याण:-

अपने सदस्यों के हित/कल्याण के लिए हर बार एसोसिएशन को BCUP Affiliation Rules के अन्तर्गत सम्बद्धता बनाये रखने के लिए State Bar Council और Bar Council of India के नियमों को मानना बाध्यकारी है। और बार काउंसिल से प्राप्त सुविधाओं के लिए समबद्वता का होना अतिआवश्यक है नहीं तो सदस्यों को आर्थिक व अनुशासनिक दोनों तरह का नुकसान होगा। इसका प्रमाण इस तथ्य से मिलता है कि दी सेन्ट्रल बार एसोसिएशन 'बनारस' वाराणसी की साधारण सभा ने 2012 में बार का संविधान बदलकर BCUP Model By-Laws को समाप्त कर दिया था और 2013 के लिए चुनाव करा दिया था। 2014 में सेन्ट्रल बार की समबद्वता BCUP से समाप्त हो गयी और Model By-Laws नहीं होने के कारण समबद्वता का नवीनीकरण नहीं हो सका। उसके पश्चात सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के सदस्यों का उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा 5 लाख मृतक आश्रित सहायता के आवेदन बार काउंसिल स्तर पर लम्बित हो गये और मृत अधिवक्ता साथियों के परिवार वालों को 5लाख की सहायता आजतक शायद नहीं मिल पायी है। सेन्ट्रल बार एसोसिएशन 2017 के माननीय अध्यक्ष को कार्यकाल पूर्व यह बात मेरे अंशुमान दुबे अधिवक्ता के द्वारा प

"तुलसी दोहा शतक'' में गोस्वामी तुलसीदास ने किया था राम मंदिर को तोड़े जाने का जिक्र :: #AdvAnshuman

एक तर्क हमेशा दिया जाता है कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा होता तो यह कैसे सम्भव होता कि महान रामभक्त और राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास इसका वर्णन पाने इस ग्रन्थ में नहीं करते ? ये बात सही है कि रामचरित मानस में गोस्वामी जी ने मंदिर विध्वंस और बाबरी मस्जिद का कोई वर्णन नहीं किया है। हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने इसको खूब प्रचारित किया और जन मानस में यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि कोई मंदिर टूटा ही नहीं था और यह सब झूठ है। यह प्रश्न इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष भी था। इलाहाबाद उच्च नयायालय में जब बहस शुरू हुयी तो श्री रामभद्राचार्य जी को Indian Evidence Act के अंतर्गत एक expert witness के तौर पर बुलाया गया और इस सवाल का उत्तर पूछा गया।  उन्होंने कहा कि यह सही है कि श्री रामचरित मानस में इस घटना का वर्णन नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने इसका वर्णन अपनी अन्य कृति 'तुलसी दोहा शतक' में किया है जो कि श्री रामचरित मानस से कम प्रचलित है। अतः यह कहना गलत है कि तुलसी दास जो कि बाबर के समकालीन भी थे,ने राम मंदिर तोड़े जाने की घटना का वर्णन नहीं किया है और जहाँ तक राम चरित मानस